Tuesday, July 28, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सातवाँ सत्र

कपास की बिजाई के बाद निडाना में विगत रात पहली बार ढंगसर की वर्षा हुई है। अत: आज कपास के खेत में पाठशाला की पढ़ाई नहीं हो पाई। इसीलिए आज पाठशाला के इस सातवें सत्र को कृषि विकास अधिकारी, निडाना के कार्यालय में चलाने का फैसला किया गया। आज के सत्र में डा.सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित किसानों को कपास की फसल में अब तक पाए गये रस चूसक हानिकारक कीटों व् मांसाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। किसानों की कीट पहचान को पुख्ता करने के लिए आज लैप-टाप पर हर कीट की विभिन्न अवस्थाओं की संजीदा फोटो दिखाई गई।  
पर "तेली नै तेल की अर् मस्सदी नै खल की ". नरेंद्र के बाबु चन्द्र नै ये फोटो नहीं सुहाए अर् न्यूं बोल्या - डा.किम्में बताता हो तो कपास की फसल में खाद-पानी की बतादे? भातियाँ बरगी बाट दिखा कै मुश्किल तै मिंह आया सै। रणबीर- यु भी किम्में सवाल होया। आपां सारे नै जाणा सा अक देशी कपास में तो केवल एक कट्टा यूरिया का भतेरा। आधा कट्टा बौकी आने के समय अर् बाकि आधा कट्टा फूल आने के समय।
चन्द्र पाल नै रणबीर को बीच में रोक कर झट से बोल्या - हमने तो बी.टी.बो राखी सै। इसकी खुराक बता।
"बी.टी.कपास की खुराक का मनै कोन्या बेरा। सात समुन्द्रा पार की किस्म सै। इसके बारे में तो डा.साहिब ही कुछ बतावैगा। "-रणबीर नै अपनी जगह ली।
बी.टी.कपास की खुराक को लेकर तो डा.भी चक्कर में पड़ग्या। झट अपने झोले में से "खरीफ फसलों की समग्र सिफारिशें " नामक पुस्तक निकाली। फ़टाफ़ट पन्ने पल्टे और न्यूं कहन लगा- चंद्रपाल, जवाब तेरी बात का तो इस किताब में भी कोन्या। हो भी क्यूकर? पिछले पांच साल में इस बी.टी.कपास की इतनी ज्यादा किस्म बाज़ार में आ ली अक इतने किस्म के तो महिलाओं के सूट भी किसी एक दूकान में कोणी पावै। पर गजब यु सै अक इन इतने सारे बी.टी.हाइब्रिडाँ में तै एक भी अधिसूचित नहीं सै अर् अपने कृषि विश्वविधालय से सिफारिशसुदा नही सै। इसीलिए तो इस सिफारिशी किताब में भी इन बी.टी.किस्मों की कोई भी सिफारिश नही सै। इब थाम बताओ, मेरा के ब्योंत सै इनके बारे में कुछ बतान का। हाँ! याद आया एक किसान गोष्ठी में एक कृषि वैज्ञानिक न्यूं कहन लग रहा था,"हे!  किसान भाइयों, कृषि विश्वविद्यालय नै इन बीटी बीजों की सिफारिश  कोन्या कर राखी| इसलिए मै अधिकारिक तौर पर तो कपास की इन बी.टी.किस्मों की खुराक आप किसान भाइयों को नही बता सकता|  पर ये बी.टी बीज हैं तो संकर किस्म के ही| अत: अमेरिकन कपास की  संकर किस्मों वाली खुराक इन बी.टी.किस्मों में भी चल जाएगी|  इस लिए कपास के इन नये बी.टी.किस्मों में भी- तीन कट्टे यूरिया, तीन कट्टे सिंगल सुपर फास्फेट, चालीस किलोग्राम पोटाश व्  दस किलोग्राम जिंक सल्फेट देना चाहिए| यूरिया को छोड़ कर बाकि सारे खाद बिजाई के समय दे| यूरिया को  तीन बराबर भागों में बिजाई, बौकी आणे व् फूल आणे के समय दे|
बसाऊ पै इतना लांबा भाषण नहीं सुना गया, बीच में ही न्यूं  बोल्या, "आजकल 120 रुपये में NPK का एक किलो का पैकट आवे सै|. इसनै गेर लेवां तो  किसा  रहवै ? केवल एक किलोग्राम  किले की कपास में रंग सा ला दे सै| किम्मे बताता हो तो इसके बारे में बतादे?
डा.दलाल- " बसाऊ, प्रजनन के समय आच्छी खुराक तो चाहिए सै, वा चाहे लुग्गाई हो या कपास| हाँ! हर किसान नै इसकी किम्मत का जरुर ध्यान रखना चाहिए!"
बसाऊ ठहरा भू.पु.सरपंच| अपनी बात नै तलै क्यों पडन दे था|  न्यूं  कहन लगा - डा.साहिब, आप सारी हान उलटे बिंडे की तरफ तै क्यूँ पकड़ा करो सो| बताओ? भा अर् भोई का इस दुनियां में किसनै बेरा सै?
बात उलझी देख, भू. पु. सरपंच रत्तन सिंह पै चुप नही रहा गया अर नयूँ कहन लगा, "बसाऊ, आपां पाँचवी कक्षा तै इकाई के सवाल काढ़ण लगे थे अर दसवीं तक यू ए काम करा था। फेर इस एक किलो एन.पी.के. के पैकट की किम्मत निकालना कौनसी बड़ी बात सै। कॉपी एर पेन ठाओ। आज बाजार में 50.00 किलो यूरिया (नाइट्रोजन 46%) का एक कट्टा 242 रू में आवै सै।  अतः एक किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन का मोल होया- 10.52 रुपये।  डी.ए.पी.(18% नाइट्रोजन व 46% फास्फोरस) का एक कट्टा  467 रुपये का आता है। इस कट्टे में  10.52 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 9 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन ही हो गई -
94.68रुपये की। अब  इसमें उपलब्ध 23.0 किलो शुद्ध फास्फोरस हुई -  467 - 94.68 = 372 रु. की। अतः 372 भाग 23 बराबर होगा 16 या यूँ कहले शुद्ध फास्फोरस का भाव होया 16 रुपए प्रति किलो। म्यूरेट आफ पोटाश (60%) का एक कट्टा आज 220 रुपये मैं आवै सै। यू होगा 30.0 किलो शुद्ध पोटाश का दाम। भा होगा 7.33 रुपए प्रति किलोग्राम होगा। बसाऊ तेरे उस एक किलो के पैकट नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश 190-190 ग्राम होवै सै। अब तीनों तत्वों की सही मात्रा अर सही भाव हमारे पास सै। गुणा अर जोड़ करके यू बैठेगा सात-आठ रुपए के बीच। इब बताओ कित सात-आठ रुपये अर कित एक सौ बीस रुपये। इब थाम न्यू करियो अक् एक किलो  एन.पी.के. का  यू पैकट घर बणाण खातिर कितना यूरिया, कितना फास्फोरस व कितना पोटाश चाहियेगा। यू कार्य घर जाकर खुद कर लियो।
इतनी सुण कर बसाऊ पै ना तो थूक गिटका जावै था अर ना ए निंगला जावै था।

Tuesday, July 21, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का छट्टा सत्र



निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला को चलते हुए आज डेढ महिना हो चुका है जबकि कपास की फसल तीन महीने की हो चुकी है। अभी तक महाबीर पिंडा को इस खेत में कोई कीटनाशक इस्तेमाल नही करना पड़ा। इस का मतलब यह नही है कि इस खेत में कोई कीट ही नही आया। अन्य खेतों की तरह कपास के इस खेत में भी हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग नामक रस चूसक कीट पाए गए पर कोई भी कीट आर्थिक स्तर को पार नही कर पाया। हमने पायाकि मिलीबग को फैलने से रोकने में अन्य मांसाहारी कीटों के साथ-साथ अंगीरा नामक सम्भीरका की भूमिका कारगर रही। इस भीरडनुमा छोटी सी सम्भीरका ने मिलीबग की साठ-सत्तर प्रतिशत आबादी को परजीव्याभीत करने में सफलता पाई। कराईसोपा, ब्रुमस, मकड़ी, दस्यु बुगडा, दिद्ड बुगडा व् कातिल बुगडा आदि मांसाहारी कीटों ने मिलकर हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों की वृध्दि पर लगाम लगाए रखी। रस चूसक कीटों के साथ-साथ अब कपास के खेत में स्लेटी भुंड, तेलन व् चितकबरी सुंडी के पतंगे भी दिखाई देने लगे हैं। ये कीट चर्वक किस्म के हानिकारक कीड़े हैं। इन कीटों का दलिया बना कर पीने वाली डायन मक्खी भी किसानों ने इस खेत में देखी। इतना भुखड एवं बेशर्म मांसाहारी जन्नौर किसानों ने इस से पहले नही देखा था। डा.सुरेन्द्र दलाल ने इस मक्खी को एक टिड्डा उठाये देखा। इस दृश्य को दिखाने की गरज से किसानों को आवाज देकर अपने पास बुलाया। सभी किसान इस नजारे को अभी देख भी नही पाए थे कि यह मक्खी अपने शिकार सम्मेत फुर्र से उड़ गई। समूह बल एवं दृष्टि के बलबूते किसान इस के पीछे पडे रहे। लेकिन मक्खी भी कहाँ हार मानने वाली थी। अपना शिकार साथ लिए-लिए किसानों का आधे किले का चक्कर कटवा दिया। आख़िर में संदीप मलिक ने इसे शिकार सम्मेत पकड़ कर कांच कि बोतल में रोक लिया। अब जाकर सभी किसानों ने इस डायन मक्खी के नजदीक से दर्शन किए। बोतल में भी भगतनी ने अपने शिकार को चट करना नही छोड़ा। इस के बाद शहतूत कि छाया में किसान समूहों ने चार्टों के माध्यम से अपनी- अपनी प्रस्तुति पेश करी। जिस का निष्कर्ष कुलमिलाकर यह निकला कि इस खेत में कपास की फसल में प्राकृतिक संतुलन की मेहरबानी के चलते महाबीर पिंडा को किसी भी कीटनाशक का स्प्रे करने की आवश्यकता नही है। सत्र के अंत में मनबीर व् डा,सुरेन्द्र दलाल ने किसानों को कपास की फसल में समेकित पोषण प्रबंधन की विस्तार से जानकारी दी। बाग्गे पंडित द्वारा बाकुली वितरण के साथ आज के कार्यक्रम की जय बोल दी गई।

Tuesday, July 14, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पांचवा सत्र।

चार्ट पर रिपोर्ट तैयार करते किसान
स्लेटी भूंड
पंखुड़ियाँ चबाते हुए तेलन
बाजरा की बिजाई, धान की रोपाई व् छोरियां के दाखिले जोरों पर हैं। ये तीनों काम इसे सै जित घरबारण की बजाय घरबारी की जस्र्रत ज्यादा पडै सै। इसी लिए तो आज जुलाई की चौदह तारीख को निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला में किसानों की हाजिरी तीस की बजाय तेईस ही रही। खेत में पहली बार किसानों की हाजिरी कम नज़र आई। कपास की फसल पर इस सीजन के फूल भी पहली नजर आए और पहली बार ही स्लेटी भुंड व् तेलन नामक चर्वक कीट भी देखे गए। तेलन फूलों की पंखुडियां, पुंकेसर व् स्त्रीकेसर को कुतर कर खाते पाई गई जब कि स्लेटी भूंड पतों के किनारे व् फूलों के किनारे खाते हुए पाया गया। पांच--पांच किसानो के चार समूहों द्वारा दस --दस पोधों का बारीकी से सर्वेक्षण, निरिक्षण व् अवलोकन किया गया। शीशम के नीचे किसानो ने चार्टों के माध्यम से अपने अपने समूह की जानकारी दी। सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा आदि रस चूसक हानिकारक कीटों की संख्या क्रमश: 2.7 प्रौढ़ प्रति पत्ता, 1.3 निम्फ प्रति पत्ता व् 4,7 निम्फ प्रति पत्ता पाई गई। इन कीटों कि संख्या पिछले सप्ताह के मुकाबले कुछ ज्यादा पाई गई पर आर्थिक कगार से अब भी काफी कम है। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो 40 पौधों में से एक पर ही पाया गया। रणबीर ने अपने समूह की प्रस्तुति देते हुए बताया कि इस पौधे पर केवल 10 मिलीबग थे जिनमें से 7 मिलिबगों के पेट में अंगीरा के बच्चे पल रहे थे। अंगीरा नामक सम्भीरका ने इस खेत मे मिलीबग को ख़त्म करने में उलेखनीय कार्य किया है। अब कपास के इस खेत में मकडियों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। मकड़ी एक मांसाहारी जीव सै-इस बात की जानकारी तो पाठशाला के सभी किसानों को हो गयी है।
अंगिरा से परजीव्याभित मिलीबग।
दस्यु बुगड़ाः चुरड़े का शिकार।
तेला, सफ़ेद मक्खी व् चुरडा जैसे छोटे--छोटे हानिकारक कीटों का खून चूस कर गुजारा करने वाले एन्थू बुगडा के निम्फ भी कपास की फसल में पाए गये। कपास की फसल पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण करने पर पाया गया कि अभी इस खेत में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने कि दूर--दूर तक जरुरत नही है। तेलन आकार में बड़ी, दूर से ही दिखाई देने वाला कीट होने के कारण जरुर किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही थी। पर महाबीर पिंडे व् जिले पंडित ने तेलन नामक ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण का देसी तरीका बता कर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने बताया कि इस बीटल के पंख बहुत भारी है इसलिए एक बार गिरने के बाद, इसके लिए उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। एक चप्पल हाथ में लेकर तेलन को मारो, गिरते ही पैर में पहनी चप्पल से इसे मार दो। इन दोनों ने तेलन को मार गिराने का जिवंत प्रदर्शन भी करके दिखाया। तेलन के मुतने पर शरीर पर फफोले हो जाते है, इसकी जानकारी तो किसानों को पहले से ही है। पर सेवा सिंह का न्यूं कहना की मैं तो इस तेलन नै न्यूं ऐ मार दिया करू -हथेली बीच मसल कै। मेरे कदै कुछ नहीं होंदा। या बात किस्से कै हजम नहीं होई। इस पर तो चन्द्र भी न्यूं बोल्या अक सेवा अपने इस ज्ञान नै अपने ऐ धोरे राख। इन बंकुलियाँ की तरिया फ्री में मत बाँट। आज कै इस सत्र में स्टार-न्यूज़ का स्थानीय संवाददाता श्री राजेश रावल भी मौजूद रहा और कीटों की कुछ वीडियो भी तैयार की। इस फोटों में एक एंथू बुगडा का निम्फ तेले का बाड्डी-जूस पिते हुए दिखाया गया है। ये फोटो राजेश ने ही खिंच कर इस पाठशाला के किसानों को दी है।

Tuesday, July 7, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौथा सत्र

जुलाई की सात तारीख में सुबह के साढे सात बजे है। निडाना गावं के महाबीर पिंडा के खेत में अपना खेत--अपनी पाठशाला के लिए किसान पहुँच रहे हैं। निडाना के किसानों के अलावा रुपगढ़ गावं से राजेश व् कुलदीप जेई, ईगराह से मनबीर व् धर्मबीर, चाबरी से सुरेश व् निडानी से वजीर भी इस पाठशाला में भाग लेने के लिए आए हैं। भैरों खेड़ा के संदीप व् मनोज भी इस सत्र में टेम पर ही आ लिए। ललित खेड़ा के रामदेव, राजकुमार व् रमेश भी यहाँ उपस्थित हैं। आजकल भाईचारे के टोटे में इतने भाइयों का एक जगह कीटों के खिलाप जंग में शामिल होना मंबिरे के लिए बहुत खुशी की बात सै। पर यहां बजट की बहस पर बरसात की बहस भारी पड़ रही है। देश भर के ज्योतिषियों व् मौसम वैज्ञानिकों की खिली उडाते हुए कप्तान तीन दिन के भीतर भारी बरसात की भविष्यवाणी कर रहा है। इसी बरसात की आश में आसमान की तरफ़ टक--टकी लगाए किसानों की टोलियाँ अपने हाथ में कागज, कलम व् लैंस ले कर कपास की फसल में अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए उतरती हैं। प्रत्येक टोली में पाँच किसान। इन्ही में से एक ग्रुप का लीडर। मनबीर, रणबीर, जयदीप, जयपाल, रत्तन व् जयकिशन स्वभाविक तौर पर लीडरों के रूप में सामने आ रहे है। आज उस समय किसानों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा जब उन्होंने खेत में घुसते ही मित्र कीट के रूप में क्राईसोपा के अंडे, उसके शिशु व् प्रौढ़ भारी तादाद में दिखाई देने लगे। इसका सीधा सा मतलब था- हरे तेले, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों का खो। रुपगढ़ से आए राजेश ने अक्संड के पौधे पर मिलीबग के बच्चों को खाते हुए हाफ्लो के गर्ब मौके पर पकड़ लिए। हाफ्लो ब्रुम्स नाम की एक छोटी सी बीटल है जिसके प्रौढ़ व् गर्ब बडे ही चाव से मिलीबग के शिशुओं को चबा -चबा कर खाते है। क्राइसोपा के शिशुओं को बंद बोतल में थोक के भाव तेले, सफ़ेद-मक्खी व् चुरडा के प्रौढ़ों व् बच्चों को खाते अपनी आंखों से देखा। किसानों ने कपास की फसल में मकडियों को भी खूब मौज करते देखा। इसके अलावा मित्र कीटों के रूप में मिलीबग की कालोनियों में अंगीरा नामक सम्भीरका भी देखि गई जो कीट--वैज्ञानिकों में एनासिय्स के रूप में प्रसिध्द है तथा मिलीबग की पुरी आबादियों को परजीव्याभीत करने में सक्षम है। मित्र कीटों की उपस्थिति से अति--उत्साहित हम कीटों की गिनती कर लेने के बावजूद आज इनके आर्थिक स्तर की गणना करने से चुक गये। चाह इसी ही चीज होवै सै। कपास की फसल में हानिकारक कीटों के विरुद्ध जंग में अचानक इतने साथी व् हिमायती मिल जाने पर किसान खुशी में सब कुछ भूले जा रहे थे। क्या आर्थिक हद? और क्या पारिस्थिति विश्लेषण? इनकी इस खुशी में डा.क्यूँ भांजी मारण लाग्या। आज के सत्र में आर्थिक हद अर् पारिस्थिति विश्लेष्ण बीच में ही छोड़ कर डा.सुरेन्द्र दलाल ने भी लैप--टाप पर स्लाइड्स की मार्फ़त मिलीबग के इतिहास, इसका जीवन--चक्र, भोजन विविधता व् भक्षण क्षमता, इसकी विभिन् प्रजातियों, इसकी प्रजनन क्षमताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसके परजीवियों, परभक्षियों व् रोगाणुओं की जानकारी किसानों को दी। माणस ज्यादा-जगह थोड़ी, ऊपर तै बिजली कोन्या थी। इस लिए स्लाइड दिखाने वाले व् देखने वाले सब पसीने में बुरी तरह भीग गये। पर उलाहना किसनै देवै। इस काम खातिर किस्से नै पीले चौल तो भेजे नही थे। पाठशाला में बांटी जाने वाली बांकुलियों को कोई न्यौंदे के चौल समझ ले तो इसमे किस्से का के कसूर। लैप-टाप की सेवाएँ उपलब्ध करवाने के लिए श्री नरेंद्र सैनी का धन्यवाद करते हुए, निडाना गावं के भू.पु.सरपंच व् इस पाठशाला के नियमित छात्र बसाऊ राम ने सत्र समाप्ति की घोषणा की।