Tuesday, October 6, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सत्रहवां सत्र



आज निडाना में चल रही "अपना खेत-अपनी पाठशाला" का सत्रहवां सत्र है| इस समय तक किसान दो-दो चुगाई कर चुके हैं| आजकल सुबह के सात जल्दी बज जाते हैं| भले बक्त्तां में तो सरकारी स्कूलों का समय भी इस महीने तै साढ़े नौ बजे का हो जाया करता| इस पाठशाला में किसान सात बजे क्यूकर पूग जावै? इसीलिए तो आज आठ बजे भी डा.दलाल नै एडी ठा-ठा के किसानों की बाट देखनी  पड़ रही है| ऐकले नै ना कीट दिवैं दिखाई अर् नांही किसान| आच्छा कसुता चाला होया| ऊपर तै आणे-जाणे वाले कपास के खेत में ऐकले की हांसी और करण लागगे| ख़ैर जो भी हो, समय के पहियें नै तो घूमते रहना ही था| आहिस्ता-आहिस्ता पौने नौ बज गये जिब बसाऊ अर् बागा आते दिखाई दिए| डा.कै तो घी सा घल गया| सवा नौ बजे तक गिन कर पुरे इक्कीस किसान आ चुके थे| आज डा.को पहली बार अहसास हो रहा था कि कार्यक्रम का समय और स्थान हमेशा किसानों कि सहूलियत और फुर्सत के हिसाब से तय करना चाहिए| नही तो न्युए बाट देखनी पड़ेगी ज्यूकर आज देखनी पड़ी|
"खेत में तो घुस नही सकते| पिंडे नै कल ही इसमें ठाडा पाना ला दिया| इब के जरुरत थी पानी लान की?" - बिने के पाले नै छेड़ा छेड्या|
"इस टेम पै कपास की फसल में पानी की खासी जरुरत हो सै| नही तो पैदावार पै असर आवैगा|"- कई किसान एकदम टूट कै पड़े| रत्तन नै सुझाव दिया कि अब तो पाठशाला का काम समाप्ति की ओर है इसलिए अपने को इस पुरे सीजन में कीटों का हिसाब-किताब करना चाहिए ओर फेर अपनी पैदावार व् क्रिया-कलापों का भी हिसाब करना चाहिए| या बात सभी को पसंद आई| सभी शहतूत के निचे इक्कठे हो लिए| इस सत्र में च्या-भां व् होच-पोच रोकने के लिए डा.दलाल को जिम्मेदारी सौपी गई| उन्होंने संदीप को इस काम के लिए आमंत्रित किया| संदीप नै सभा में बताया कि शुरू में तो इस कपास कि फसल में चुरडा, हर तेला(COTTON JASSID), सफ़ेद मक्खी(WHITE FLY), मकडिया-जूं व् मिलीबग(MEALYBUG) नामक हानिकारक कीड़े देखे गये परन्तु इनमे से कोई भी रस चूसक कीट आर्थिक-कगार को छू नही पाया| इस लिए इस सीजन में इनमे से किसी भी कीट के नियंत्रण या प्रबंधन की आवशयकता नही पड़ी|
"स्टिंक-बग, मिरिड-बग व् मसखरा-बग(SQUASH BUG) भी तो देखे थे|", रणबीर ने बीच में  टांग अड़ाई|
"देखन नै तो! तेलन(BLISTER BEETLE), भूरी पुष्पक-बीटल(BROWN FLOWER BEETLE) व् चैफर-बीटल(CHAFER BEETKE) भी देखी थी|"- जवानों की बहस में बसाऊ नै जोश दिखाया|
बहस उलझ-पुलझ होते देख डा.दलाल न्यूं कहन लगा, "बसाऊ, मेरे यार तू तो पांच साल गाम का सरपंच भी रह लिया| कढ़या होया भी अर् पढ़या होया भी| फेर क्यूँ बीच में लीख पाडै| बता कित रस-चूसक कीट अर् कित चर्वक किस्म के कीट? रस चुस्कों की बात चल रही थी, चलन दे| "
"मनै, ऐकले नै क्यूँ रोको? डा.साहिब| यु रनबीर भी तो बीच में डिकड़े तोड़े था!"-बिना जबाब दिए बसाऊ कै सब्र नही आया|
" ठीक सै, इब आगै तै एक टेम पै एक ही बोलेगा| वो अपनी पूरी बात कह ले तब दूसरा बोलेगा| बीच में टोका-टाकी नही होगी| इब यु रुपगढ़िया राजेश हमें चर्वक किस्म के कीटों का मोटा-मोटा हिसाब देगा|" - डा.दलाल ने उपस्थित किसानों से मुखातिब हो अपना आदेश सुनाया|
राजेश, "डा.साहिब इस कपास के सीजन में फलीय भागों को नुकशान पहुचाने वाली, तीनों सुंडियां देखन नै भी नही मिली| एक दिन तो चितकबरी-सुंडी(SPOTTED BOLLWORM-ADULT) का प्रौढ़ मिला था अर् केवल एक दिन एक पौधे पर सात- आठ बौकियों पर इसकी सुंडी का नुकशान देखने को मिला था| जहाँ तक गुलाबी सुंडी की बात सै, इससे प्रकोपित केवल दो फिरकीनुमा फूल, मैने अपने खेत में इस पुरे सीजन में नजर आये| ना तो गुलाबी-सुंडी के दर्शन हो पाए अर् ना इसके अंडे व् प्रौढ़ दिखाई दिए| अमेरिकन-सुंडी तो 2001 में अपना विकराल रूप दिखा कर तकरीबन गायब सी हो रही है| लेकिन कपास के कुबड़े कीड़े


, हरे कुबड़े कीड़े(LOOPER), तम्बाकू आली सुंडी(ASIAN COTTON LEAF WORM), पत्ता लपेट सुंडी(COTTON LEAF ROLLER), लाल बालों वाली सुंडी व् सांठी आली सुंडी(Spoladea recurvalis)  आदि कीड़े जरुर कभी-कभार देखने में आये| परन्तु इनका भी कपास की फसल में कोई नुकशान देखने में नहीं आया|"
होक्मे का संदीप न्यूं कहन लगा,"डा.साहिब, इस राजेश नै न्यूं पूछो अक या सांठी वाली सुंडी कपास नै कद तै खान लागगी| मनै अपने खेत में खूब खेड़ मार कर देख ली| या सांठी वाली सुंडी कपास के पौधों को कुछ नहीं कहती| लोग बेमतलब डरते होए इस नै मारन खातिर सांठी पर भी कीटनाशकों का स्प्रे करते मिल जायेंगे|"
संदीप की पूरी बात ध्यान तै सुनकै डा.दलाल कहन लगा, "संदीप यु राजेश के तेरा जेठ लागै सै? सीधे राजेश नै ए क्यूँ नहीं पूछ लैंदा|" या सुन कै सारे किसान खिल-खिलाकर हंस पड़े| पर रतने नै या हंसी नहीं सुहाई अर् न्यूं बोल्या, "मेरी बात सुनो! सारे कीड़े गिना दिए| बी.टी.कपास में, हम इस मिलीबग तै डरा थे| यु मिलीबग तो भस्मासुर जिसा दिखै था| पर जमां फुस्स लिकड़ा| इसके तो भांत-भांत के कीड़े अर् रोगाणु ग्राहाक पाए| पर इस लाल-मत्कुण(RED COTTON BUG) व् श्यामल-मत्कुण(COTTON DUSKY BUG) का के करां? इनको खाने वाला कोई कीड़ा, हमने नहीं देखा| एक-आध लाल-मत्कुण जरुर फफूंद रोग से मरता हुआ पाया गया| किते-किते इसनै, मकड़ी भी चपेटे पाई गई| फेर भी इन दोनु मत्कुनों ने इबकी बार कपास की फसल में नुकशान करण में कसर नहीं घाली, खासकर बी.टी.कपास में| कम तै कम भी एक किले गेल पांच मन का खादा मारा| ये दोनु कीड़े कपास के बीजों का तेल पीगे| ऊपर-ऊपर तै कपास आछी दिखें गई अर् मंडी में तोल के समय कम पाई| इब कम उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक शब्दां की पूंछ ठा-ठा कै इस के किम्मे कारण गिना दियो| मसलन- किसानों द्वारा प्रबंधन तकनीक का पूरी दक्षता के साथ इस्तेमाल न करना, हईब्रिडों का सही चुनाव ना करना, नये कीड़ो का आगमन एवं प्रकोप होना आदि|

Tuesday, September 29, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सोलहवां सत्र


Tuesday, September 22, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का पंद्रहवां सत्र

निडाना कि इस पाठशाला का पिछला सत्र "किसानों-वैज्ञानिकों का संवाद" के नाम पर था। सारा दिन 35 कृषि विकास अधिकारियों के साथ बीता। गजब का हुआ अनुभव और हुई अजब सी अनुभूति। पाठशाला के आयोजकों एवं संयोजकों के पास इसके वर्णन एवं व्याख्याँ के लिए शब्द नहीं हैं। इस कार्यकर्म से किसानों के उत्साह में संचार की बानगी आज पाठशाला के पन्द्रहवें सत्र में दिखाई दी। अब कपास की फसल में अन्य कीटों की अपेक्षा "Red Cotton bug" व् "Cotton Dusky Bug" ज्यादा दिखाई देने लगे हैं। इन्हीं दो पादपखोरों पर सभी का ध्यान है। रणबीर ने आशंका प्रकट की की काटन डस्की बग के सैकडों निम्फ ज्यादातर अर्धखिले टिंडों में पावै सै। हो-ना-हो यु बग अंडे भी अर्धखिले टिन्डाँ में देता पावैगा। या सुनते ही मिहर सिंह के सुरेन्द्र नै कपास के फोहे से बीज के पास तीन झकाझक सफ़ेद अंडे ढूंढ़ दिए। दीपक फोहे में से हलके पीले रंग के अंडे खोज लाया। रणबीर ने कच्चे पत्ते पर हलके गुलाबी रंग के अंडे ढूंढ़ मारे। तीनों किसानों द्वारा लाये गये ये अंडे हालाँकि तीन रंग के
थे पर तीनों की बुनावट व् आकार हुबहू एक जैसा था। इसका मोटा सा अंदाजा यही था की ये अंडे एक ही कीट के हैं। अर् हैं भी- गाधला बग़ के। ठीक इसी क्षण बिल्ली की तरह दा मे बैठे बसाऊ नै डा.सुरेन्द्र दलाल को लाठी की खोद अर् भीत बीच ले लिया, "डा.साहब, आपने तो न्यूँ बताया था अक यू गंधला बग़ अपने अंडे या तो गीली जमीन में देता है या फ़िर जमीन की तरेडों में।"

डा.दलाल नै भी एक बै तो धरती भिड़ी होगी। पर तुंरत संभल के न्यूँ बोल्या," मेरा इसमे किम्मे कसूर नहीं। मनै तो या बात थारै तै किताब में तै पढ़ कर बताई थी। किताब NCIPM,Pusa Campus,New Delhi आल्याँ की सै। चार धुरंधर विज्ञानिकां नै मिलकर लिख राखी सै। 1999 में 105 रुपये में खरीदी थी।" इतना कह झट डा.साहिब नै झोले में से किताब निकाल कर रत्तन के हाथ पर रख दी।
रत्तन भी पुरा खपड, बिना किताब खोले न्यूँ कहन लगा अक डा.साहब, आपनै अपराधबोध का शिकार होन की जरूरत नही। या तो प्रकृति सै। इसके खेल न्यारे-न्यारे। हो सके सै भले बक्तां में इस गंधले बग़ का जापा जमीन रूपी सामान्य हस्पताल में होंदा हो और इब इन खातिर भी अधखिले टिंडों के फोहों में डिलिवरी हट खुलगे हों।
इब तो बेधड़क हो कै इस गंधले बग़ के परभक्षी, परजीव्याभ, परजीवी या रोगाणुओं के बारे में बताओ।" मनबीर नै आज पहली बार डा.दलाल का आत्मविश्वास डगमगाया देखा। रत्तन कै हाथ में से हैंड-बुक लेली व् खोल कर पढ़न लगा। थोडी देर बाद न्यूँ बोल्या अक यु बग़ बहुत तीखी गंध छोड़ता है। इसीलिए इस बग़ को खाने वाले कीट भी बहुत कम होंगे। इस हैंड-बुक में तो इस बग़ का केवल एक ही परभक्षी बता रखा है। इसका नाम सै-Tricholeps tantilus. मेरे ख्याल तै तो यू भी एक बुगडा सै जो दुसरे कीटों का रक्त चूस कर गुजारा करता है। शायद हो भी एन्थु बुगडे की मौसी का छोरा। ना तो मनै इसकी पिछाण अर् ना मनै इसकी फोटों देख राखी।
रामजी लाल का चन्द्र जमाँ भरा बैठा था। इतनी कडे उट्टै थी। न्यूँ बोल्या अक किसने देखा सुरग भरथरी आपा मरे बिना। चालो अर् फेर माथा मारो इन अधखिले टिन्डाँ मै। और देखते-देखते किसानों ने इन अधखिले फलीय भागों में चार कीट पकड़ लिए। इनमे से दो मैगट अर् एक गर्ब सै। किसके सै ? या ना to डा.नै बेरया ar ना किसानां नै। समय अर् स्थान के हिसाब से सै परभक्षी। इनकी सही पहचान व् भक्षणता का पता लगाने का काम, किसानों की यह पाठशाला कीट-वैज्ञानिकों के जिम्में छोड़ती है। आजकल सारी यूनिवर्सिटियां में इंटरनेट सै। कोई न कोई भला कीट-वैज्ञानी जरुर म्हारी इस काम में मदद करेगा।
"सपने में ग्याभण होण की बाण छोड़ दो अर् इस डा.की जिम्मेवारी लावो। हमेटी, कृषि विश्वविधालय या इंटरनेट पर तै इन कीटों का भेद पाड़ कै लावै।" जयकिशन शर्मा नै सुझाव दिया। इसके साथ ही कप्तान द्वारा बाकुलियाँ बांटने के साथ पाठशाला के इस सत्र का समापन हुआ। इसी समय पंजाब केसरी के संवाददाता श्री अनिल पंघाल व् युवा शक्ति के पदाधिकारी श्री दलबीर चहल आ पहूँचे पाठशाला के इन किसानों से मौके पर संवाद करने। सवा घंटे के इस नये सत्र में अनिल पंघाल ने किसानों से ढेर सारी जानकारी इक्कठी की।

Wednesday, September 16, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौदहवाँ सत्र

आसुज लागदै की ग्यास नै चाँद निडाना के आसमान में सारी रात खेस तान कर सुता पड़ा था। सुबह-सवेरे कृषि विकास अधिकारीयों के स्वागत वास्ते इसने ठान की किसमे हिम्मत! इसीलिए पाठशाला के चौदहवें सत्र की प्रभात वेला में निडाना--चाबरी के अड्डे पर पाठशाला के केवल छ: किसान ही अपने हथजोडे(praying-mentis) का स्वागती बैनर उठाए इस उधेड़--बुन में खड़े थे कि HAMETI जींद से चौदहवीं के चाँद आयेंगे या आफताफ? खोटा इंतज़ार क्षणिक ही हुआ। ठीक आठ बज कर आठ मिनट पर हमेटी की मिनी--बस अड्डे पर आकर रुकती है। आठ मिनट लेट इसलिए होगे अक सारे रास्ते ड्राइवर कै माथे सूरज लागै था। इस बस में से ना तो कोई चाँद उतरा अर् ना कोई आफताफ। इसमे से उतरे गिन कर उन्नतीस कृषि विकास अधिकारी जो हरियाणा कै दस जिलों की नुमाईंदगी कर रहे थे तथा अब हमेटी, जींद में चल रही TOF के शिक्षार्थी। डा.हरभगवान लेट होग्या। उसने ल्याण कै चक्कर में डा.लाठर लेट होग्या। डा.नेहरा कै ताप चढ़ग्या। डा.जैन के बोझ तै मिनी--बस दबै थी। ख़ैर डा.मांगे, डा.सुभाष व् डा.राजेश की अगुवाई में इन कृषि अधिकारियों का स्वागत करते हुए भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह व् उसके साथी किसानों की टीम इन्हें गावं की तरफ़ लेकर चली। अभी आधा फर्लांग भी नही चले थे कि रणबीर व् साथी किसान अपने बुगडों वाले स्वागती बैनर के साथ शिक्षार्थियों के स्वागत में पलकें बिछाएं खड़े थे। इसके बाद मनबीर की टीम फेर राममेहर की, फेर संदीप की टीम मकडियों, लेडी बिटलों व् मक्खियों के स्वागती बैनरों सम्मेत खड़ी थी तथा अंत में राजेन्द्र की टीम कपास सेदक कीटों वाला बायकाटी बैनर उठाए खड़ी थी।
यहीं कृषि विकास अधिकारी का कार्यालय है। चौदाह बाई चौदह का कमरा। अंदर पधारने पर "चक्चुन्दर कै आए मेहमान--आ भै! लटक " वाली स्थिति थी। दफ्तर में खड़े--खड़े ही हालवे अर् बाक्लियाँ का ब्रेकफास्ट। हलवा गजब का स्वाद अर् बाकलियाँ का भी तोड़ होरया था। खड़े--खड़े ही गावं के सरपंच रामभगत सेठ नै मेहमानों का स्वागत किया अर् पैन व् पैड सप्रेम भेंट किए। खड़े--खड़े ही कृषि अधिकारियों व् किसानों की छ: टिम्में बनी। हर टीम में छ: किसान अर् छ: अधिकारी थे। ये टीम गावं के खेतों में अलग--अलग लोकेशंज पर गई। ये सभी टिम्मे अपना अवलोकन,निरिक्षण व् संवाद कायमी का काम निपटा व् खाना खाकर ठीक बारह से साढ़े बारह के बीच ब्राहमणों वाली चौपाल में पहुँची और यहीं शुरू हुआ किसानों व् कृषि अधिकारियों के मध्य संवाद कायमी का सिलसिला। सूत्रधार बने डा.सुभाष। सत्र की शुरुआत में ही डा.साहिब ने किसानों की दिल खोल कर तारीफ करते हुए गावं में पधारने पर अधिकारीयों की आभगत व् किसानों के कीट ज्ञान के लिए भूरी--भूरी प्रशंसा के बड़े--बड़े भरोट्टे बाँध दिए। सराहना की अभावग्रसता से सत्या हारे किसानों पर इस पीठ थप--थपाई का गजब का असर हुआ। ठीक इसी समय हमेटी, जींद के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन इस चौपाल में पधारे। कृषि उपनिदेशक, डा.रोहताश सिंह, कृषि विज्ञानं केन्द्र, पिंडारा के मुख्य विज्ञानी डा.आर.डी.कौशिक भी इस पंचायत के मार्गदर्शन हेतु निडाना पहुंचे। वर्तमान सरपंच रामभगत व् भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने गावं व् विभाग की तरफ़ से मुख्य मेहमानों का पगड़ी पहना कर आदरमान किया। किसानों ने उनका फुलमालाओं से स्वागत किया। अधिकारीयों एवं किसानों की इस कृषि --पंचायत में रणबीर ने बेहीचक एवं निसंकोच निडाना की धरती पर कपास की फसल में पाए गए 24 हानिकारक व् 32 हितकारी कीटों के बारे में पंचायत को अवगत कराया। सूत्रधारी डा.सुभाष ने अपना तफसरा रखा कि हे! पाठशाला के किसानों आपके इस कीट--ज्ञान के तो हम कायल हैं। अब तो आप निडाना क्षेत्र में सिरसा--फतेहाबाद के मुकाबले कपास की कम पैदावार के कारणों पर बहस करो। मनबीर ने कृषि--पंचायत को बताया कि हमारे यहाँ घाट पैदावार के मुख्य कारणों में से एक है--प्रति एकड़ पौधों कि संख्या कम होना. हमने इस सीजन में साठ से ज्यादा किलों में कपास के पौधों कि गिनती की है। 504 से लेकर 3227 पौधे प्रति एकड़ पाए गये। अब आप बताइये! पौधों की इतनी कम संख्या से अच्छी--खासी पैदावार कहाँ से आएगी?
दूसरा कारण-- खरपतवारों का ठीक से नियंत्रण ना होना। बेहतर अंकुरण के लिए डा.कमल ने अपने अनुभव विस्तार से किसानों के साथ साझे किए तथा डा.राजपाल सुरा ने पंचायत को नलाई--गुडाई के नये यंत्र व् इस पर उपलब्ध सब्सिडी बारे अवगत कराया। बहस के दायरे को विस्तार देते हुए, कृषि विज्ञानं केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा.आर.डी.कौशिक ने बेहतर पोषण प्रबंधन वास्ते किसानों से अपने खेत की मिटटी जाँच करवाने की अपील कर डाली। अचानक मिटटी जांच की प्रमाणिकता को लेकर इस पंचायत में अनावश्यक तीखी बहस चल निकली। गैरप्रमाणिकता से मिटटी जांच की आवश्यकता को नकारा नही जा सकता--डा.रोहताश सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए किसानों से निराशा से बचने की अपील की और भविष्य में मिटटी नमूनों की सही जाँच का भरोसा दिलाया। अब भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने पादक-पोषण व् कीट--नियंत्रण के लिए 5.5% जिंक--यूरिया--डी.ऐ.पी.घोल (0.5%जिंक: 2.5%यूरिया:व् 2.5%डी.ऐ.पी.) के स्प्रे परिणाम पंचायत में बहस के लिए रखे। उन्होंने बताया कि इस घोल का छिडकाव करने से कपास की फसल में छोटे--छोटे कीट (तेला, मक्खी, चुरडा, माईट व् चेपा आदि) मरते हुए पाए गए तथा स्लेटी भुंड जैसे कीट सुस्त अवस्था में पाए गये. इस तथ्य को 15-20 किसानों ने तीन--चार बार अजमा कर देखा है। डा.हरभगवान ने इस प्रस्तुति की दार्शनिक अंदाज में व्याख्या देने की भरपूर कौशिक की। उन्होंने किसानों को बताया कि सभी अण्डों से बच्चे नहीं निकलते। सभी बच्चे प्रौढ़ नही बन पाते और सभी प्रौढ़ अंडे देने तक जिन्दा नही रह पाते। नवजात कीट तो फौके पानी से भी मर जाते हैंलेकिन पंचायत को यह उत्तर हजम नही हुआ। किसानों ने दो टूक उत्तर माँगा कि हमें यह बताओ अक पौषक तत्वों का 5% का यह घोल कीटों के लिए टाक्षिक होगा या नहीं? इस पर डा.कौशिक ने आगे बात बढाई कि कृषि विश्वविद्यालय तो इस घोल की शिफारिस नही करता। इस घोल से तो पौधों पर घातक परिणाम आने चाहियें।
अब चंद्रपाल ने उसके खेत में देसी माल का छत्ता होने के बावजूद शहद की मक्खियों का बी.टी.कपास के फूलों पर न आने का मुद्दा उठाया। इस बात की पुष्टि आज इस खेत पर गए कृषि विकास अधिकारीयों की टीम ने भी की। इस मुद्दे का भी आज की इस पंचायत में कोई सर्वमान्य व् संतोषजनक जवाब नही मिल पाया।
डा.नविन यादव ने कपास के बी.टी.बीजों में पौधों की जड़ों की कम लम्बाई के तथ्य को रेखांकित करना चाहा। उन्होंने आशंका प्रकट की कि कही ये बी.टी.बीजों की विशेषता ही ना हो। इस पर डा.दलाल ने हस्तक्षेप करते हुए फ़रमाया की यह सिंचाई सुविधावों व् भारी मशीनरी के निरंतर इस्तेमाल से पथराई भूमि भी एक कारण हो सकता है।
बी.टी.की खाम्मियों का जिक्र चलते ही गावं के भू.पु.सरपंच बसाऊ का जोश बुढ़ापे में जोर मारने लगा। कहने लगे कि यु नया कीड़ा मिलीबग भी इन बी.टी.बीजों के साथ भारत में आया सै।
पाण्डु-पिंडारा के कृषि विज्ञानं केन्द्र से आए डा.जगत सिंह ने बसाऊ कि इस जानकारी को दुरस्त करने की नियत से फ़रमाया कि यह मिलीबग तो हिन्दुस्तान में 1995 यानि की बाढ़ वाली साल से पहले भी देखा गया है और इसकी रिपोर्ट विभिन्न रसालों की हुई है।
खुली पंचायत और खुल कर बात कहने की सब को छुट। इसी मौके का फायदा उठाते हुए डा.दलाल ने भी फिन्नोकोक्स सोलेनोपसिस नामक मिलीबग की रिपोर्टिंग की मांग डा.जगत सिंह से कर डाली। डा.दलाल तो यहाँ तक भी कह गये कि 1995 की छोडो अगर भारत में किसी ने यह फिनोकोक्स सोलेनोप्सिस नाम का मिलीबग किसी ने 2002 से पहले हमारे देश में देखा हो तो वह कुँए में पड़ने को तैयार?
आज के इस प्रोग्राम में मज़ा आ गया। समय का किसी को भी ध्यान नही रहा। ठीक साढ़े तीन बजे डा.सुनील दलाल ने रसगुल्लों से सभी प्रतिभागियों का मुहं मिट्ठा करवाना शुरू किया। इसी समय कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह ने जिले में चल रही कृषि विभाग की विभिन्न स्किम्मों की जानकारी दी। उन्होंने आज के इस प्रोग्राम में उभरे बहस के मुख्य बिन्दुओं को वर्कशाप में उठाने की भी बात कही। प्रोग्राम की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए हमेटी के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन ने निडाना के इन किसानों को एक दिन हमेटी में आने का निमंत्रण दिया। आज के इस कार्यकर्म के अंत में सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए डा.सुरेन्द्र दलाल ने डा.नार्मन बोरलाग की मृत्यु पर शोक प्रस्ताव रखा जिस पर सभी ने दो मिनट का मौन धारण कर इस महान कृषि वैज्ञानिक को श्रधांजलि भेंट की।

Tuesday, September 8, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का तेहरवाँ सत्र

आज निडाना की अपना खेत--अपना पाठशाला का तेहरवाँ सत्र है। इसमे अब किसानों की हाजिरी कम रहने लगी है। मौसम की मार अर् कुणबे की पुकार इस पतली हाजिरी के लिए है जिम्मेवार। आज किसानों ने भिड़ते ही तम्बाकू आली सुंडी व् इसके अंडे ढूंढ़ लिए। अभी तक इस खेत में कपास की फसल पर इस सुंडी द्वारा खाए गये पत्ते नही मिले थे। बल्कि यह सुंडी भी सांठी के पौधों पर ही पाई गई है। सांठी का इस खेत में तोड़ होरया सै। इस सांठी में हरी सुंडी नै फतुर मच्चा राख्या सै। इस सुंडी को किसान सांठी वाली सुंडी कहा करै सै। किसान इस सुंडी नै मारण खातिर भी सांठी पर कीटनाशकों का छिडकाव करते हैं। उन्हें डर रहता है कि सांठी पाछे यह सुंडी बाडी में भी चढज्यागी। आज पाठशाला के किसानों ने बारीकी से निरिक्षण व् अवलोकन कर अच्छी तरह से तस्सली करली कि यह सुंडी कपास में नुकशान नही करती। सांठी में इसकी अधिकता होते ही दुनिया भर के पक्षी इस सांठी आली सुंडी को खाने के लिए खेत में आ धमकते हैं। जै किसान स्प्रे इस्तेमाल नहीं करे तो सांठी नै यह सुंडी खा जा अर् सुंडी नै कीटखोर-पक्षी नही छोड दे। खूब खैड़ मार के भी आज किसानों को इस सांठी वाली सुंडी के अंडे नजर नहीं आए। लेकिन इस माथामारी में किसानों ने इस सुंडी को परजिव्याभित करने वाली कोटेसिया नामक सम्भीरका के ककून ढूंढ़ लिए। सांठी के पौधों पर कराईसोपा के अंडे ढूंढ़ लिए। ध्यान रहे कि इस कराईसोपा के गर्ब तरुण सुंडियों व् अण्डों का भक्षण करते हैं। आज तो इस खेत में सांठी के पौधों पर हाफ्लो नामक लेडी बीटल भी पाई गई। कपास में पाए जाने वाले विभिन्न पतंगों के अंडे व् तरुण सुंडियां लेडी बीटल व् इनके बच्चों का भोजन बनती हैं। इस कपास के खेत में गजब का प्राकृतिक संतुलन है हानिकारक कीटों व् लाभदायक कीटों के बीच। हो भी क्यों ना! महाबीर पिंडा ने इस खेत में अब तक किसी भी कीटनाशक का एक भी स्प्रे नहीं किया है। और तो और अबकी बार महाबीर पिन्डै ने सड़क व् नाली के सहारे खड़े कबाड़ को भी साफ़ नही किया। इन गैरफसली पौधों को हमारे किसान कबाड़ कहते हैं तथा वैज्ञानिक इन्हे खरपतवार कहते हैं। इनमे कांग्रेस घास, पीली बूटी, कंघी बूटी, उलटी-कांड, आवारा-सूरजमुखी, अक्संड जैसे अनेक पौधे शामिल हैं। वैज्ञानिक इन पौधों को केवल हानिकारक कीटों के आश्रयदाता के रूप में ही देखते हैं। " न रहेगा बांस-अर् ना रहेगी बांसुरी।" इसीलिए तो कीट नियंत्रण के लिए इन खरपतवारों को नष्ट करने की बात करते हैं। परन्तु पाठशाला के किसानों का कहना है कि हमें कीट नियंत्रण को भी समग्र दृष्टी से निंगाहना चाहिए। प्रकृति में हर जगह-हर पल द्वंद्व मौजूद होता है। इन खरपतवारों के लिए शाकाहारी कीट प्रलयकारी भूमिका में होते हैं जबकि यही कीट, मांसाहारी कीटों व् उनके बच्चों के लिए पालनहार कि भूमिका में होते हैं। अगर हम पंगे ना लेकर इन दोनों तरह के कीटों को फलने-फूलने का मौका दे तो हमारी फसल में दोनों तरह के कीटों का आगमन साथ-साथ होगा और हमारी फसल कीटों के नुक्सान से बची रहेंगी।
सत्र के अंत में किसानों ने अगले हफ्ते 15 तारीख को होने जा रही "किसान-वैज्ञानिक संवाद" जिसमें हरियाणा के दस जिलों से 35 कृषि विकास अधिकारी, हमेटी के प्रिंसिपल, कृषि उपनिदेशक, व् के.वि.के.पिंडारा के मुख्य वैज्ञानिक भाग लेंगे, की तैयारियों का जायजा लिया। सामूहिक फैसले लेते हुए किसानों ने व्यक्तिगत जिम्मेवारियां ली। मेहमानों का स्वागत, उनके लिए नाश्ता और दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जिम्मेवारी खेत-पाठशाला के किसानों ने तय की। आयोजन स्थल तय किया। छ: लोकेशंज के लिए छ: ग्रुप लीडर भी आजके सत्र में तय किए। नाश्ते में हलवा उपलब्द करवाने की जिम्मेवारी राजेन्द्र ने तथा बाकुलियों के प्रबंधन की जिम्मेवारी कप्तान ने ली। मेहमानों के स्वागत वास्ते गाँव के सरपंच श्री राम भगत सेठ भी उस दिन कार्यक्रम में हाजिर रहेंगे। सरपंच से बात करने की जिम्मेवारी रणबीर ने ली|

Tuesday, September 1, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का बाहरवां सत्र

आज अपना खेत अपनी पाठशाला को चलते हुए तीन महीने हो चुके हैं। पाठशाला के किसान पौधों पर कीटों की गिनती करते करते बोर हो चुके हैं। अब किसान कपास की फसल में नये नये कीटों के चक्कर में रहते हैं।जहाँ पुराने कीटों की संख्या कम हुई है । वहीं कपास में नये कीटों का आगमन टिंडों के साथ हुआ है। ये कीट हैं रेड कोटन बग और कॉटन डस्की बग जिन्हें किसान लाल बनिया तथा मटमला बनिया कहते है। किसानो ने इन कीटो को जब सीधे तौर नुकसान करते हुए नही पाया तो आपसमें चर्चा का दोर शुरू हुआ। सुनील ने बताया शायद ये कीट कपास में नुकसान नही phunchate है बसाऊ ने बताया बुजुर्ग इन कीटो को बनिया बताते है। इस का मतलब साफ है किये कीट नुकसान तो जरुर पहुचाते हैं। बनिये ने किसानो को नुकसान ही पहुंचाया है। रणबीर ने सोचने पर मजबूर करते हुए कहा ये यदि नुकसान नही करते तो ये यहाँ पर कर क्या कर रहे हैं। ये क्या खा क्या रहे हैं । जिस से ये जिन्दा रहते हैं। यह बात सोचने वाली थी इस लिए किसानों ने दोबारा गहनता से निरिक्षण शुरू किया। जिस में पाया गया कि ये कीट खिली हुई कपास में बिनोलो के पास झूमे हुए पाए और इन कि हरकतों पर ध्यान देने पर पाया कि ये कीट बिनोलो से तेल चूसते हैं। और कपास कि क्वालिटी को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानो ने इन कीटों के उदगमस्थल को तलाश ने कि कोशिश तो कॉटन डस्की बग के अंडे तथा बच्चों को खिली हुई कपास के अंदर काफी मात्रा पाया। यह तो दुर्भाग्य है कि दोनों ही कीट बदबूदार हैं । जिस से कोई भी कीट इन कीटों को नुकसान पहुंचाते हुए अभी तक तो नही पाया गया लेकिन पिछले सप्ताह के मुकाबले इन कीटों कि घटी संख्या को देखते हुए लगता है कि कोई कीट तो हैं जो इन कीटों को नुकसान पहुंचाते हैं।
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Tuesday, August 25, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का ग्याहरवाँ सत्र

चाबरी  की चौपाल में कृषि पंचायत।
अपना खेत-अपनी पाठशाला, निडाना के किसानों ने पिछले सत्र में लिए सामूहिक फैसले को लागु करने के लिए अपनी व्यक्तिक जिम्मेवारियों का निर्वाहन बाखूबी किया। अगस्त की बीस तारीख में दीपक के ट्रैक्टर पर सवार होकर, पाठशाला के आठ किसान भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह के नेतृत्व में सुबह नौ बजे ललित खेड़ा पहुंचे। गावं के किसानों को राजपाल की बैठक में इक्कठा किया। फसल पोषण, कीट प्रबंधन व् रोग प्रबधन पर रत्तन सिंह ने अपना खेत-अपनी पाठशाला के अनुभव विस्तार से उपस्थित किसानों को बताये। महाबीर ने किसानों को कपास के कीटों बारे जानकारी दी। इतफाक से मौके पर मौजूद सिंधवी खेड़ा के बलवान मलिक व् बलवान वकील ने किसानों की इस कृषि-पंचायत की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए सिंधवी खेड़ा में भी एक ऐसी ही पंचायत आयोजित करने की अर्ज की। हरफूल के राजपाल ने गुहांडी भाईयों का इस कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करते हुए जलपान का प्रबंध भी किया।
ललित खेड़ा में कृषि पंचायत
निडाना की खेत पाठशाला के किसानों की यही पंचायत अगस्त की चौबीस तारीख, बार-सोमवार को दिन के दस बजे मारुती, ट्रैक्टर व् मोटरसाईकल पर सवार होकर चाबरी की चौपाल में पहुँची। बस्साऊ अर् राममेहर तो इस पंचायत में पैदल ही जा पहुंचे। चाबरी के पच्चास से ज्यादा किसान अपने गुहांडी किसानों की बात सुनने इस कृषि-पंचायत में हाजिर हुए। पाठशाला के प्रतिनिधियों के रूप में रत्तन सिंह, रणबीर व् बसाऊ ने चाबरी के इन किसानों के साथ अपने अनुभव साझे किए। चाबरी के किसानों की तरफ से साहिब, प्रेम, परताप, महाबीर, अशोक व् करतार आदि ने बहस को आगे बढाया। इस बहस को समेटते हुए डा.सुरेन्द्र दलाल ने धान की खेती के बारे में किसानों को विस्तार से बताया। अंत में साहिब ने इस कार्यकर्म के आयोजन के लिए निडाना के किसान भाईयों का धन्यवाद किया तथा जलपान का प्रबंध किया।
सिम्मड़ो बीटल का गर्ब चेपे का भक्षण करते हुए।
महाबीर पिंडे के पाठशाला वाले खेत में कीड़े अब हांगा मारे पावै से। इसीलिए अब किसानों के सभी समूहों ने पौधों के पत्तों पर कीट गिनने छोड़ दिए। आज बागा, जिले, पाला, जयकिशन व् रत्तन की टीम ने एक पौधे पर चितकबरी सुंडी के प्रकोप को निंगाह लिया। इस सुंडी ने इस पौधे पर सात-आठ फुल-बौंकियों को क्षतिग्रस्त कर रखा था। इसके अलावा तो इस खेत में इस कीट का हमला कहीं नजर नही आया।
दीपक, महाबीर, संदीप, विनोद व् रणबीर की टीम ने एक अन्य पौधे के पत्तों पर अल को देख लिया। फसल में अल की अभी शुरुआत ही हुई है। इस टीम ने अल से प्रकोपित पौधे पर सिम्मडो नामक बीटल के बच्चे को अल खाते हुए मौके पर ही पकड़ लिया। सिम्मडो के प्रौढ़ व् गर्ब सुंडियों के अंडे भी खाते हैं। यह जानकारी रणबीर, राममेहर, राजेन्द्र व् रत्तन को पहले से ही थी। इस बीटल के गर्ब को मिलीबग के बच्चे खाते आज से तीन साल पहले ही रूपगढ के किसानों की उपस्तिथि में देख रखा है।
चितकबरी सूंडी सा ग्रसित बौकियाँ।
आज तो अगस्त की पच्चीस तारीख है। इस दिन तो इन किसानों ने खरकरामजी में कृषि-पंचायत का आयोजन करने जाना है। आज पाठशाला के सत्र का फटाफट यहीं अंत कर इस पाठशाला के सोलह किसान खरक रामजी गावं के लिए रवाना हुए।

Tuesday, August 18, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का दसवां सत्र

निडाना गावं में अपना खेत--अपनी पाठशाला का आज दसवां सत्र है. पाठशाला में किसानों की व् खेत में कीटों की संख्या लगातार कम हो रही है. एकल परिवार व् खुश्क मौसम के चलते निडानी का वजीर तो कदे ट्यूबवैल अर् कदे माइनर के साथ लटोपिन रहता है. चाबरी का सुरेश दक्षिण भारत के दौरे पर चला गया. रूपगढ के राजेश व् कुलदीप एक तो आण--जाण के खर्चे से डर गये व् दुसरे इस कपास के खेत में अभी नये--नये कीड़े नही मिल रहे. भैरों खेडा के मनोज की नानी बीमारी के चलते हिसार हस्पताल में दाखिल हो गई अर् रोशन के संदीप की अकेले यहाँ आण का ब्योंत नहीं. निडाना के पाले की भैंस अनजानी बीमारी की चपेट में आ गई. जयकिशन का साला गुजर गया. विनोद का ड्राइवर भाग गया. जयपाल नए पिछले दिनों अपनी कपास में जिंक--यूरिया घोल के साथ इमिडा का स्प्रे मार लिया. इसीलिए शर्म के मारे गोल हो गया. पाठशाला में नियमित हाजिरी बजाने वाले , महाबीर का कुछ पत्ता नहीं लगा.
जहाँ तक कीटों की बात है इस पाठशाला वाले खेत में कीट भी टोहे--टोहे पावै से. सफ़ेद मक्खी, तेला, चुरडा, स्लेटी भुंड व् माइट्स आदि कीटों की संख्या आर्थिक कगार से कोसों दूर है. जिस पत्ते पर चुरडे पावै थे उस पर माइट्स गायब पावै थी. इसका मतलब दोनों कीटों में सहअस्तित्व का रिश्ता नहीं है. रणबीर का यह भी कहना था अक् चुरडा माइट्स का खून चूसता है. रणबीर ने यह भी बताया कि मिलीबग की इस खेत में दोबारा से शुरुवात हो चुकी है.
जहाँ तक पिछले सत्र में लिए गये होमवर्क कि बात है सिर्फ़ पाँच किसान ही इसे पुरा करके लाये हैं. होमवर्क था अपने--अपने खेत में कपास कि फसल पर जिंक, यूरिया व् डी.ऐ.पी.की तिगड़ी के 5% घोल का स्प्रे करना व् इसका पौधों व् कीटों पर प्रभाव देखना. राममेहर ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि पौधों पर गजब का रौनक मेला था अर् कीडों की माँ सी मर रही थी. छोटे--छोटे कीट तो मरे पाये गये व् स्लेटी भुंड जैसे कीटों की कसुती सत्या हार रही थी.
संदीप ने बताया कि यू स्प्रे तो कपास व् धान में गजब का काम करै सै. पौधों में पोषण का अर् कीटों पर जहर का काम करते साफ़--साफ देखा गया.
रणबीर ने बताया कि इस 5% घोल का स्प्रे जहाँ कपास कि फसल के लिए अमृत का काम करते पाया वहीं कीटों के लिए हानिकारक पाया. सफ़ेद मक्खी, चुरडे, माईट्स, मिलीबग के शिशु व् तेले के निम्फ आदि कीटों के लिए मौत का पैगाम बना यह पौषक तत्वों के घोल का स्प्रे. स्लेटी भुंड व् भूरी पुष्पक बीटल के लिए मौत तो नहीं पर भयंकर सुस्ती का आलम जरुर लेकर आया यह स्प्रे.
रत्तन सिंह व् पं चंद्रपाल की रिपोर्टें भी इन रिपोर्टों से मेल खाती हुई थी.
इस घोल के कीटनाशी प्रभावों को व्यापक पैमाने पर जाँचने--परखने के लिए तथा इससे होने वाले पोषण का भरपूर फायदा उठाने के लिए किसानों ने विभिन् गावों में कृषि--पंचायत आयोजित करने का फैसला किया. अगस्त की बीस तारीख को पहली इसी पंचायत ललित खेडा में आयोजित की जायेगी. अगले सप्ताह यह कृषि--पंचायत चाबरी व् खरक रामजी गाँव में आयोजित की जायेगी.

Tuesday, August 11, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का नोवां सत्र

आज अगस्त के महीने की 11 तारीख है. खेत पाठशाला का नोवाँ सत्र है. आज जितनी भयंकर गर्मी मनबीरे ने अपनी जिन्दगी में नही देखीथी. मनबीरे ने ईगराह से निडाना जाते हुए जितने भी किसान खेतों में देखे सब के सब अपनी झोली के साथ हवा करते नजर आए. निडाना की किसान खेत पाठशाला के किसानों का भी इस ऊट--पटांग गर्मी में बुरा हाल होरया था. जो इस गर्मी में कसुते दुखी होकै न्यूँ कहन लाग रहे थे अक जमा मरगे भै. इसी दुर्गति में भी बसाऊ पै बीच में ऐ छौक लायें बिना ऩही रहा गया अर् न्यूं बोला -- टेलीविजन तो आज दिल्ली का तापमान 30 डिग्री बतावैं था. बसाऊ कै तो नाथ बस रतना सरपंच ही घाल सकै सै.
रत्तना खड़ा होकै न्यूं कहन लाग्या -- बसाऊ, आपना यु हरियाणा स्कूल जाण जोगा भी नही होया था जब तो तनै दसवीं पास कर ली थी. आपने टेम में भी साधारण--विज्ञान कि किताब में ऊष्मा आले पाठ में गर्मी दो ढाल(संदक अर् लुकमां) बता राखी थी. आज बस इतनी सी बात सै अक् इस गर्मी में घूँघट आली गर्मी का हिस्सा ज्यादा सै जो कदे भी टेम्परेचर वाले पैमाने पर दिखाई कोन्या दे. लेकिन अपने बुजर्गों की नजर ते या घूँघट आली गर्मी कदे बच नही पाई. ज्यां ऐ ते वे न्यूं कहते आए अक् भादवे का घाम अर् साझे का काम सेधया करै. करना तो चाहिए था आपां नै पानी का जुगाड़ करन वास्ते महाबीर का अर् बाकुलियाँ का जुगाड़ करन खातिर कप्तान का धन्यवाद. नहीं तो इबतक इस भयंकर गर्मी में सब कै बुलबली आ लेती. इस बात नै यहीं ख़त्म करों. बाकुलियों का गला मारो आर पानी पियो. फेर हिम्मत करके आज तो केवल पाठशाला के पिछले सत्र में तय काम पर गौर करो. महाबीर नै तो चाह--चाह में परसों एक स्प्रा ओर ठोक दिया उन्ही पोषक तत्वों का.
रतने की बात मान कर किसान इस गर्मी में न चाहते हुए भी अवलोकन व् निरिक्षण के लिए खेत में उतरे. अपने--अपने समूहों में 10-10 पौधों का निरिक्षण कर बीस मिनट में ही किसान वापिस शहतूत के निचे आ लिए. सभी किसान इस बात पर तो सहमत थे अक आज के दिन कपास के इस खेत में कीड़े तो ख़त्म से ही है. थोड़े बहुत नाम लेन खातिर बच भी रहे हैं तो उनकी सेहत ख़राब सै. इस सारे घटनाक्रम पर डा.सुरेंद्र दलाल नै स्वर्गीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी कसुता मौन धारण कर रखा है. इस बात को ताड़ कर रणबीर पै नही रहा गया आर न्यूं बोल्या- " डा.साहब आप भी इस पर कुछ तफसरा रखो. आप जमाँ--ऐ मौनी बाबा बनगे. "
जबाब में डा.दलाल न्यूं कहण लगा- " रणबीर, सच्चाई तो या सै कि हम समग्र सिफारिशों से बाहर नही जा सकते. इनमें इस बारे कुछ लिख नही रखा. म्हारी हालत तो आँखों पर डिब्बे लगे, कोल्हू में जुड़े ऊंट जैसी है जिसको सिर्फ़ कोल्हू की पैड़ों में ही चलना होता है. समग्र सिफारिशें ही सर्वोपरि सै इन तै न्यारी टेक ठान का मतलब अनुशाशन का मामला सै. जै खुदा ना खास्ता सड़क पर आ गये तो कोई पाली भी नही लावै. इब थाम ही बताओ मै क्यूकर नाथ तुड़वान की हिम्मत करू? "
या सुन कर मै मनबीर भी चुप नही रहा, " न्यूँ तो घबराओ मत. आपके पास साढे तीन हजार किसानी परिवार सै. जै सारे जने साल में एकबार चार--चार धड़ी दानें भी आप नै दे दिवां तो आप के पास साढ़े सत्रह सौ मन दाने होगे. जै मंडी में बेच के आवोगे तो सात लाख के होगे. इतनी तनखा तो आपकी कदे नही होवै. जो कहना सै खुल कर कहो. "
" मान लिया मूलधन सौ से क्या घर में ब्याज आना शुरू हो जाता है."--डा.नै अपना स्पष्टिकरण देने की कोशिश की.
जयपाल के सब्र का बाँध टुटा- "डा.दलाल, इस सांग की कोई सैदाँतिक व्याख्यां हो तो बताओ नही तो सूखी बातां के क्यों भरोटे बान्धो सो."
इस पाठशाला में सदा चुप रहने वाले सेवा अर् जिले नै भी आज एकसाथ चुपी तोड़ने का सार्थक प्रयास किया- "अगर छो में नही आवो अर् म्हारी हँसी नही करो तो एक बात हम भी कह दा."
"यहाँ तो सारे बराबर सा. खुल कै बोलो."-- रतने नै सहारा लाया.
जिले नै आगे बात बढाई- "जिब आपका यु पोषक तत्व यूरिया औस में पत्तों पर लाग ज्या तो पत्तों को जला दे सै. अर् फसल में जै टिन्डें नही पाटै तो टंकी गेल तीन किलो यूरिया का घोल पत्ते फुकन खातिर सारी हाण इस्तेमाल करा सा. फेर यु कीडों को कडै बक्शै था."
या सुन कर तो डा.दलाल भी म्हें--म्हं मुस्कराया पर पकड़ा गया. सारे किसान एकदम चिलाये- "यूरेका! --यूरेका! इब तो डा.साहब कुछ बोल."
"बात में तो जिले वाली में दम सै. जै इस बात नै जीव के वजन के हिसाब से तोल कर देखा तो या और भी वजनी हो जा सै. जिंक,यूरिया व् डी.ऐ.पी.का 5% का घोल जहाँ पौधों के लिए खुराक का कम करता है वहीं यह घोल ग्राम व् मिलीग्राम वजन वाले छोटे--छोटे कीटों के लिए जहर का कम कर सकता है. इसमे कोई ताजुब्ब की बात नहीं होनी चाहिए."-- कह कर डा, दलाल नै अपनी बारी टाळी.
आजकी पाठशाला में फैसला लिया गया कि इस हफ्ते अपने--अपने खेत में इस घोल का कीटनाशी प्रभाव देखेंगे.

Tuesday, August 4, 2009

अपना खेत - अपनी पाठशाला का आठवां सत्र


चितकबरी सूंडी का प्रौढ़।
चितकबरी सूंडी (गोभ वाली सूंडी)
चितकबरी सूंडी का अंडा।
मकड़ीः शहद की मक्खी का शिकार।
मकड़ीः कराईसोपा का शिकार।
मकड़ीःअंडों की सुरक्षा में।
मकड़ीः स्वयं हुई शिकार।
विशालकाय मकड़ी।
आज अगस्त की चार तारीख को निडाना गावं में अपना खेत - अपनी पाठशाला का आठवां सत्र है। चौमासे में भी बरसात का अकाल पड़ा हुआ है। कपास की बिजाई से लेकर अब तक केवल एक बार ही बारिश हुई है। यह मौका था 27 जुलाई का। अबकी बार तो किसानों को भूमि में मौजूद आल को दाब कर ही काम चलाना पड़ रहा है। पहले कसोले से नलाई व् अब हल से गुड़ाई करके ही खेत में खड़ी कपास की फसल के लिए नमी का जुगाड़ किया जा रहा है। इसके अलावा महाबीर पिंडे नै दो दिन पहले 5.0 ग्राम जिंक सल्फेट , 25.0 ग्राम यूरिया व् 25.0 ग्राम डी.ऐ.पी.प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर सात टंकी एक एकड़ में खड़ी अपनी इस कपास की फसल में मारी सै। आज फसल की रौनक में गजब का सुधार देख कर सभी किसान उत्साहित हैं। हमेंशा की तरह पाठशाला के इस सत्र में भी कीट अवलोकन व निरिक्षण के लिये किसानों के पाँच ग्रुप बने। हर ग्रुप में पाँच-पाँच किसान थे। प्रत्येक ग्रुप को दस-दस पौधों का सर्वेक्षण करना है व आर्थिक-कगार निकालने के लिये कीटों की गिनती करनी है। रणबीर के नेतृत्त्व में विनोद, संदीप, महाबीर व् राममेहर के किसान समूह ने आज पौधों का अवलोकन व् निरिक्षण करते हुए तेला, सफेद-मक्खी व चुरड़ा  आदि रस चूसकर हानि पहुँचाने वाले छोटे-छोटे कीड़े को व्यापक पैमाने पर मरा हुआ पाया। किसानों के इस ग्रुप ने स्लेटी-भूंड, चैफर-बीटल व भूरी पुष्पक बीटल आदि चर्वक कीटों में अजब सी सुस्ती को भी नोट किया। पोषक तत्वों के छिडकाव से पौधों में वृद्धि तो सामान्य सी बात सै पर कीटों में सुस्ती व मौत नै सभी किसानों को हैरान कर दिया। जयकिशन  ने खेत के मालिक महाबीर पिंडा पर शक कर डाला कि कहीं इसने चोरी-छुपे कीटनाशकों का स्प्रे कपास की अपनी इस फसल में कर दिया हो। महाबीर पिंडा इस आरोप पर तिलमला उठा और नेमा-धर्मी करने लगा। बात उलझती देख, डा. सुरेन्द्र दलाल ने अपने इन किसान मित्रों को इस सप्ताह अपने-अपने खेत में इस मिश्रण के 5.5 प्रतिशत घोल का स्प्रे करने व परिणाम नोट करने का सुझाव दिया। अन्तः किसानों ने पोषक तत्वों के इस कीटनाशी प्रभाव को अपने-अपने खेत में बारीकी व् विस्तार से आंकलन करने का फैसला किया। इस तिखी बहस के बावजूद किसानों के लिए यह खुशी की बात थी कि कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों की संख्या आर्थिक कगार से कोसों दूर है। कपास के इस खेत में चित्तकबरी सुंडी का एक आध प्रौढ़ पतंगा, दो-चार सूंडी व एक-दो अंडा ही नजर आया। लगता है परजीव्याभ व् परभक्षी कीट शायद महाबीर पिंडे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहें हैं। कपास के इस खेत में मकड़ियों के भी ठाठ हैं। इन मकड़ियाँ नै खेत मालिक के भी ठाठ ला रखे सै। आधा दर्जन से ज्यादा किस्म की मकड़ियाँ देख ली किसानों नै, इस खेत में आज। इस सप्ताह तो मकड़ियों की औसत प्रति पौधा इस खेत में आठ से ज्यादा आई सै। घनखरे कीड़ों को तो ये मकड़ियाँ ही देख लेंगी। पर अफ़सोस की सुंडियों के टोटे में, इंजनहारी अपने बच्चों की परवरिश के लिए किसान मित्र मकड़ियों को ही अपने मिट्टी के बने घरों में ढ़ो रही हैं। किसी ने सही कहा है कि, "जी का जी बैरी।  मक्खी का घी बैरी।।" सत्र के आखिर में हर सप्ताह की तरह इस बार भी चन्ने की बाक्लियाँ बांटी गई।

Tuesday, July 28, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सातवाँ सत्र

कपास की बिजाई के बाद निडाना में विगत रात पहली बार ढंगसर की वर्षा हुई है। अत: आज कपास के खेत में पाठशाला की पढ़ाई नहीं हो पाई। इसीलिए आज पाठशाला के इस सातवें सत्र को कृषि विकास अधिकारी, निडाना के कार्यालय में चलाने का फैसला किया गया। आज के सत्र में डा.सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित किसानों को कपास की फसल में अब तक पाए गये रस चूसक हानिकारक कीटों व् मांसाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। किसानों की कीट पहचान को पुख्ता करने के लिए आज लैप-टाप पर हर कीट की विभिन्न अवस्थाओं की संजीदा फोटो दिखाई गई।  
पर "तेली नै तेल की अर् मस्सदी नै खल की ". नरेंद्र के बाबु चन्द्र नै ये फोटो नहीं सुहाए अर् न्यूं बोल्या - डा.किम्में बताता हो तो कपास की फसल में खाद-पानी की बतादे? भातियाँ बरगी बाट दिखा कै मुश्किल तै मिंह आया सै। रणबीर- यु भी किम्में सवाल होया। आपां सारे नै जाणा सा अक देशी कपास में तो केवल एक कट्टा यूरिया का भतेरा। आधा कट्टा बौकी आने के समय अर् बाकि आधा कट्टा फूल आने के समय।
चन्द्र पाल नै रणबीर को बीच में रोक कर झट से बोल्या - हमने तो बी.टी.बो राखी सै। इसकी खुराक बता।
"बी.टी.कपास की खुराक का मनै कोन्या बेरा। सात समुन्द्रा पार की किस्म सै। इसके बारे में तो डा.साहिब ही कुछ बतावैगा। "-रणबीर नै अपनी जगह ली।
बी.टी.कपास की खुराक को लेकर तो डा.भी चक्कर में पड़ग्या। झट अपने झोले में से "खरीफ फसलों की समग्र सिफारिशें " नामक पुस्तक निकाली। फ़टाफ़ट पन्ने पल्टे और न्यूं कहन लगा- चंद्रपाल, जवाब तेरी बात का तो इस किताब में भी कोन्या। हो भी क्यूकर? पिछले पांच साल में इस बी.टी.कपास की इतनी ज्यादा किस्म बाज़ार में आ ली अक इतने किस्म के तो महिलाओं के सूट भी किसी एक दूकान में कोणी पावै। पर गजब यु सै अक इन इतने सारे बी.टी.हाइब्रिडाँ में तै एक भी अधिसूचित नहीं सै अर् अपने कृषि विश्वविधालय से सिफारिशसुदा नही सै। इसीलिए तो इस सिफारिशी किताब में भी इन बी.टी.किस्मों की कोई भी सिफारिश नही सै। इब थाम बताओ, मेरा के ब्योंत सै इनके बारे में कुछ बतान का। हाँ! याद आया एक किसान गोष्ठी में एक कृषि वैज्ञानिक न्यूं कहन लग रहा था,"हे!  किसान भाइयों, कृषि विश्वविद्यालय नै इन बीटी बीजों की सिफारिश  कोन्या कर राखी| इसलिए मै अधिकारिक तौर पर तो कपास की इन बी.टी.किस्मों की खुराक आप किसान भाइयों को नही बता सकता|  पर ये बी.टी बीज हैं तो संकर किस्म के ही| अत: अमेरिकन कपास की  संकर किस्मों वाली खुराक इन बी.टी.किस्मों में भी चल जाएगी|  इस लिए कपास के इन नये बी.टी.किस्मों में भी- तीन कट्टे यूरिया, तीन कट्टे सिंगल सुपर फास्फेट, चालीस किलोग्राम पोटाश व्  दस किलोग्राम जिंक सल्फेट देना चाहिए| यूरिया को छोड़ कर बाकि सारे खाद बिजाई के समय दे| यूरिया को  तीन बराबर भागों में बिजाई, बौकी आणे व् फूल आणे के समय दे|
बसाऊ पै इतना लांबा भाषण नहीं सुना गया, बीच में ही न्यूं  बोल्या, "आजकल 120 रुपये में NPK का एक किलो का पैकट आवे सै|. इसनै गेर लेवां तो  किसा  रहवै ? केवल एक किलोग्राम  किले की कपास में रंग सा ला दे सै| किम्मे बताता हो तो इसके बारे में बतादे?
डा.दलाल- " बसाऊ, प्रजनन के समय आच्छी खुराक तो चाहिए सै, वा चाहे लुग्गाई हो या कपास| हाँ! हर किसान नै इसकी किम्मत का जरुर ध्यान रखना चाहिए!"
बसाऊ ठहरा भू.पु.सरपंच| अपनी बात नै तलै क्यों पडन दे था|  न्यूं  कहन लगा - डा.साहिब, आप सारी हान उलटे बिंडे की तरफ तै क्यूँ पकड़ा करो सो| बताओ? भा अर् भोई का इस दुनियां में किसनै बेरा सै?
बात उलझी देख, भू. पु. सरपंच रत्तन सिंह पै चुप नही रहा गया अर नयूँ कहन लगा, "बसाऊ, आपां पाँचवी कक्षा तै इकाई के सवाल काढ़ण लगे थे अर दसवीं तक यू ए काम करा था। फेर इस एक किलो एन.पी.के. के पैकट की किम्मत निकालना कौनसी बड़ी बात सै। कॉपी एर पेन ठाओ। आज बाजार में 50.00 किलो यूरिया (नाइट्रोजन 46%) का एक कट्टा 242 रू में आवै सै।  अतः एक किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन का मोल होया- 10.52 रुपये।  डी.ए.पी.(18% नाइट्रोजन व 46% फास्फोरस) का एक कट्टा  467 रुपये का आता है। इस कट्टे में  10.52 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 9 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन ही हो गई -
94.68रुपये की। अब  इसमें उपलब्ध 23.0 किलो शुद्ध फास्फोरस हुई -  467 - 94.68 = 372 रु. की। अतः 372 भाग 23 बराबर होगा 16 या यूँ कहले शुद्ध फास्फोरस का भाव होया 16 रुपए प्रति किलो। म्यूरेट आफ पोटाश (60%) का एक कट्टा आज 220 रुपये मैं आवै सै। यू होगा 30.0 किलो शुद्ध पोटाश का दाम। भा होगा 7.33 रुपए प्रति किलोग्राम होगा। बसाऊ तेरे उस एक किलो के पैकट नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश 190-190 ग्राम होवै सै। अब तीनों तत्वों की सही मात्रा अर सही भाव हमारे पास सै। गुणा अर जोड़ करके यू बैठेगा सात-आठ रुपए के बीच। इब बताओ कित सात-आठ रुपये अर कित एक सौ बीस रुपये। इब थाम न्यू करियो अक् एक किलो  एन.पी.के. का  यू पैकट घर बणाण खातिर कितना यूरिया, कितना फास्फोरस व कितना पोटाश चाहियेगा। यू कार्य घर जाकर खुद कर लियो।
इतनी सुण कर बसाऊ पै ना तो थूक गिटका जावै था अर ना ए निंगला जावै था।

Tuesday, July 21, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का छट्टा सत्र



निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला को चलते हुए आज डेढ महिना हो चुका है जबकि कपास की फसल तीन महीने की हो चुकी है। अभी तक महाबीर पिंडा को इस खेत में कोई कीटनाशक इस्तेमाल नही करना पड़ा। इस का मतलब यह नही है कि इस खेत में कोई कीट ही नही आया। अन्य खेतों की तरह कपास के इस खेत में भी हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग नामक रस चूसक कीट पाए गए पर कोई भी कीट आर्थिक स्तर को पार नही कर पाया। हमने पायाकि मिलीबग को फैलने से रोकने में अन्य मांसाहारी कीटों के साथ-साथ अंगीरा नामक सम्भीरका की भूमिका कारगर रही। इस भीरडनुमा छोटी सी सम्भीरका ने मिलीबग की साठ-सत्तर प्रतिशत आबादी को परजीव्याभीत करने में सफलता पाई। कराईसोपा, ब्रुमस, मकड़ी, दस्यु बुगडा, दिद्ड बुगडा व् कातिल बुगडा आदि मांसाहारी कीटों ने मिलकर हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों की वृध्दि पर लगाम लगाए रखी। रस चूसक कीटों के साथ-साथ अब कपास के खेत में स्लेटी भुंड, तेलन व् चितकबरी सुंडी के पतंगे भी दिखाई देने लगे हैं। ये कीट चर्वक किस्म के हानिकारक कीड़े हैं। इन कीटों का दलिया बना कर पीने वाली डायन मक्खी भी किसानों ने इस खेत में देखी। इतना भुखड एवं बेशर्म मांसाहारी जन्नौर किसानों ने इस से पहले नही देखा था। डा.सुरेन्द्र दलाल ने इस मक्खी को एक टिड्डा उठाये देखा। इस दृश्य को दिखाने की गरज से किसानों को आवाज देकर अपने पास बुलाया। सभी किसान इस नजारे को अभी देख भी नही पाए थे कि यह मक्खी अपने शिकार सम्मेत फुर्र से उड़ गई। समूह बल एवं दृष्टि के बलबूते किसान इस के पीछे पडे रहे। लेकिन मक्खी भी कहाँ हार मानने वाली थी। अपना शिकार साथ लिए-लिए किसानों का आधे किले का चक्कर कटवा दिया। आख़िर में संदीप मलिक ने इसे शिकार सम्मेत पकड़ कर कांच कि बोतल में रोक लिया। अब जाकर सभी किसानों ने इस डायन मक्खी के नजदीक से दर्शन किए। बोतल में भी भगतनी ने अपने शिकार को चट करना नही छोड़ा। इस के बाद शहतूत कि छाया में किसान समूहों ने चार्टों के माध्यम से अपनी- अपनी प्रस्तुति पेश करी। जिस का निष्कर्ष कुलमिलाकर यह निकला कि इस खेत में कपास की फसल में प्राकृतिक संतुलन की मेहरबानी के चलते महाबीर पिंडा को किसी भी कीटनाशक का स्प्रे करने की आवश्यकता नही है। सत्र के अंत में मनबीर व् डा,सुरेन्द्र दलाल ने किसानों को कपास की फसल में समेकित पोषण प्रबंधन की विस्तार से जानकारी दी। बाग्गे पंडित द्वारा बाकुली वितरण के साथ आज के कार्यक्रम की जय बोल दी गई।